हमारा ब्रह्मांड और मनुष्य
हमारा ब्रह्मांड और मनुष्य
हमारे ब्रह्मांड में अनेकों लोक हैं | परंतु एक आम मनुष्य को इस विषय में कुछ विशेष जानकारी नहीं होती है |
सदियों से वैज्ञानिक इस बात की खोज़ में लगे हुए हैं | और हमारे सौर मंडल को जानने के लिए हमेशा
प्रयास रत रहते हैं | भारत समस्त संसार में एक ऐसा देश है | जहाँ अनेकों रहस्य मौजूद हैं ब्रह्मांड के अनगिनत रहशयों से भरा हुआ एक अद्भुत देश जहाँ मनुष्य अपनी भौतिक आँखो से उन रहस्यों को देख पाने में असमर्थ ही रहता है | इन रहस्यों को ग्यात करने हेतु सदियों से ऋषि मुनि तपस्या में लीन रहते हैं |
और उन्हें सफलता भी प्राप्त होती है | परंतु ऋषि का जीवन अत्यंत कठिन होता है | इसलिए इस मार्ग पर चलना हर मनुष्य के वश की बात नहीं होती | क्योंकि तप के मार्ग पर चलना यानी अपनी इंद्रियो को वश में करना होता है | परंतु आज मनुष्य अपनी इंद्रियो का गुलाम बनता जा रहा है | और इसी कारण से संसार में अनेकों दुख झेलते हुए अपने प्राण त्याग देता है | और मृत्यु को कष्ट का निवारण समझ
लेता है |
परंतु यह सच नहीं है ब्रह्मांड के रचयिता ने हर पल का हिसाब किताब बनाया है | मनुष्य के कर्म के आधार पर मनुष्य पुनः जन्म लेता है | और अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार उसका जीवन निर्धारित होता है | मनुष्य को पाप और पुण्य दोनो का हिसाब अपने जीवन में भोगना पड़ता है | आज के समय में अपराध बढ़ते जा रहे हैं | मनुष्य अपनी इच्छाओं के अधीन होता जा रहा है | आज मनुष्य को जो सही लगता है | वो करता जा रहा है क्या उचित क्या अनुचित उस से उसको कोई मतलब नही बस स्वयं की इच्छा जो हो वो करो चाहे किसी को कितनी भी पीड़ा हो अपना सुख ही सर्व श्रेष्ठ समझ लेता है |
हर आत्मा में कई प्रकार के रूप समाए हुए रहते हैं | हर मनुष्य में देवता जैसी प्रवर्ती होती है तो राक्षस जैसी प्रवर्ती भी होती है | परंतु एक उच्च कोटि के साधक अपनी राक्षस प्रवर्ती पर नियंत्रण पा लेते हैं | और अपनी अच्छी प्रवर्ती के साथ जीना प्रारंभ कर लेते हैं | और आनंद से अपना जीवन जीते है |
भौतिक संसार में अपना ध्यान लगा कर मनुष्य अपना भौतिक जीवन में आनंद भोगता है , परंतु अध्यात्मिक जीवन से बहुत दूर हो जाता है |और उसी चमक दमक वाले जीवन को ही सच्चा आनंद मान कर मृत्यु के बाद बार-बार जनम लेकर पृथ्वी पर भटकता ही रहता है |
मनुष्य का शरीर अनंत इच्छाओ का घर है | ये इच्छाएँ मनुष्य को हमेशा व्याकुल रखती हैं | जिस के परिणाम स्वरूप लालच, क्रोध , अभिमान , काम और ईर्ष्या जैसी भावनाएँ उत्पन्न होती हैं | और इन प्रवर्तियों के कारण मनुष्य कभी मुक्त नहीं हो पाता और कई-कई जनम जीता है | परंतु जब सत्य का ज्ञान मिलता है तब इस मायावी संसार से मुक्त होने के लिए तड़प्ता है |
और ईश्वर के ध्यान में रहने लगता है | और तब सत्य का बोध मनुष्य को होने लगता है | निरंतर ईश्वर ध्यान और तप से मनुष्य अपनी भौतिक इच्छाओं से मुक्त होने लगता है और मुक्ति की ओर अग्रसर होता जाता है |
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