meditation and sadhna (अध्यात्म और साधना)
अध्यात्म और साधना के पथ पर चलकर ही मनुष्य अपनी आत्मा का वास्तविक रूप जान पाता है | कई प्रकार की योनियों में जन्म लेने के कारण आत्मा में कई अच्छे बुरे गुण आ जाते हैं | जैसे - जैसे मनुष्य अध्यात्म और ध्यान साधना में प्रवेश करता जाता है वैसे-वैसे उसकी आत्मा के साथ मौजूद अवगुण नष्ट होकर आत्मा निर्मल होती चली जाती है | और वो संसारिक बंधनों से मुक्त होकर परब्रह्म परमात्मा में विलीन हो जाती है | इस मुक्ति को ही मोक्ष कहा गया है | मोक्ष के पाने के बाद आत्मा जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है |
आज के समय में मनुष्य खुश और संतुष्ट दिखाई नहीं देता | क्योंकि मोह और माया के भंवर में फँस चुका है ज़्यादा दूर की सोच ही नहीं पाता | लोभ और लालच में इस तरह फँस चुका है कि उसको याद ही नहीं रहा कि वो वास्तव में एक आत्मा ही है |
यह शरीर नाशवान हैं | सारी इच्छाएँ इस शरीर में ही उत्पन्न होती हैं | जन्म शरीर का होता है मृत्यु भी शरीर की होती है| अहंकार, लालच भी शरीर में ही उत्पन्न होते हैं | आत्मा तो स्वतंत्र है | फिर क्यों मनुष्य अपनी आत्मा को ऊर्जावान बनाने हेतु ध्यान साधना नहीं करता | फालतू के प्रपंचों में अपना कीमती जीवन बर्बाद करता रहता है | मनुष्य का सारा जीवन संसारिक बातों में ही बीत जाता है | और धीरे-धीरे वो संसार को सत्य मानने लगता है | और वह यही सोचता है कि वो एक मनुष्य है और कुछ नहीं|
जो लोग ग़रीबी में जीते हैं वो अक्सर यही सोच कर परेशान होते रहते हैं कि उन्होंने कोई सुख नहीं भोग पाया धन का अभाव उन्हें आजीवन महसूस होता रहता है | और ये एक उदासी का कारण बनता है | क्योंकि वो संसार की माया को वास्तविक समझने की भूल करते हैं |
चोर लुटेरे यह सोच कर लूटमार करते हैं कि जो धन वो लूट रहे हैं वो धन अब हमेशा उनका है और उन्हें जीवन भर सुख मिलेगा उस धन के होने से | जो लोग किसी भी प्राणी की हत्या करते हैं | वो भी यही सोचते हैं कि वो प्राणी मर गया परंतु मृत्यु सिर्फ़ शरीर की ही होती है और उस प्राणी की आत्मा मुक्त हो जाती है |
अतः सुख-दुख ये सिर्फ़ संसार तक ही सीमित होते हैं | जहाँ ना तो मरने वाला ही ज़्यादा दिनों तक रहता है और ना ही मारने वाला ही | इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो बड़े-बड़े लोग जो अपने आपको ना जाने क्या-क्या समझते थे | उनका आज नामो निशान भी दिखाई नहीं देता | जो आज है वो कल नहीं रहेगा |अतः अभिमान में रहने का कोई फ़ायदा नहीं है |
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