आज जब अराजकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है। अपराध भी इतने बढ़ गए हैं। इसका कारण हिंदुत्व का ज्ञान अत्यंत सूक्ष्म हो गया है। इस मायावी संसार में जो कुछ भी अहंकार वश हो रहा है। उसका कोई लाभ नहीं होने वाला बल्कि मनुष्य जब मृत्यु को प्राप्त होता है तब न घर का रहता न घाट का। मनुष्य यह सोचता है कि मरने के बाद अगला जन्म लूंगा तो सुखी रहूंगा। या फिर इस जन्म के कष्टों से मुक्ति पा लेगा। लेकिन अफसोस मनुष्य ये नहीं सोचता कि उसकी लोक और परलोक की कमान हिंदुत्व के रचयिता के हाथों में है। सारा जीवन मनुष्य एक अबोध बालक की भांति बिता देता है। मोह माया में लिप्त होकर गलत कार्य करता जाता है और बर्बादी के दलदल में फंस जाता है।
बर्बादी का मतलब उसके एक अपराध की सजा वो कई जन्मों तक भुगतता है और ईश्वर को कोशता है। जबकि ईश्वर ने उसे भगवत गीता द्वारा कर्मों का लेखा जोखा पहले ही सौंप दिया है। परंतु मनुष्य को इस मायावी दुनिया का भ्रमजाल भ्रमित करता रहता है। मनुष्य को इतना ज्ञान नहीं होता कि जिस जीवन का उसको अहंकार है मृत्यु के पश्चात वो जीवन का सुख साथ नही रहता । और पाप कर्म के आधार पर उसको बैठने का उचित स्थान नहीं मिलता। कभी आलीशान महल में जीवन जीने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद कूड़े के ढेर पर ही बैठ पाता है और कोई स्थान उसको दिखाई ही नहीं देता। किसी मंदिर या पवित्र स्थान पर उसको प्रवेश नहीं मिलता। और फिर कई हजार वर्षों तक अच्छे कर्म करने पर ही आत्मा मुक्त होकर दोबारा जन्म लेती है। ऋषि मुनि योगी ब्रह्मांड के सभी सत्य को जान पाते हैं। तपश्या योग और साधना मनुष्य जीवन के लिए अति आवश्यक हैं। वरना जीवन निरर्थक हो जाता है। जीवन की सारी मेहनत बेकार हो जाती है।
कुछ ढोंगी महात्मा लोगों को उपदेश देते हैं और धर्म की आड़ में अय्याशी करते हुए पकड़े जाते हैं। जो सचमुच सिद्ध पुरुष होते हैं उनसे कोई दुखी व्यक्ति अपना दुखड़ा सुनाता है तो वो मन ही मन बिना बताए दुखी व्यक्ति का दुख दूर कर देता है और ढिंढोरा भी नहीं पीटता । और ईश्वर की महत्वता का वर्णन करता है स्वयं की तारीफ नहीं करता। क्योंकि एक सिद्ध पुरुष ही जानता है कि स्वयं उसके पास कुछ नहीं है। जो कुछ भी है वो ईश्वर की शक्ति है जो उसके अंदर समा कर कल्याण कर रही है।
अक्सर किसी चर्चित व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर लोग उसकी समाधि बना कर पूजना शुरू कर देते हैं। इस से उस व्यक्ति की आत्मा ऊर्जा वान होती चली जाती है। और वो लोक कल्याण भी करने लगती है। परन्तु उनकी उतनी ही सीमा होती है। ईश्वर ने ब्रह्मांड को रचा है इसलिए इस ब्रह्मांड को बनाये रखने के लिए ईश्वरीय और दैवीय पूजा उपासना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा पृथ्वी लोक पर घूम रहे पिशाच लोगों के मन पर अधिकार करके त्राहि -त्राहि मचा देंगे कहीं पर हत्या तो कहीं पर बलात्कार और दरिंदगी भरे कार्य दिखाई देंगे मनुष्य को स्वयं पर नियंत्रण खत्म हो जाएगा। दिनों दिन मनुष्य अमानवीय साहित्य और फिल्में देखने में रुचि लेने लगेगा। और इस मायावी संसार को ही सत्य समझने लगेगा।
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