Dharm
धर्म
पृथ्वी पर अलग - अलग स्थानों पर कई प्रकार की मानव जाती निवास करती हैं | अपने जीवन यापन हेतु मनुष्य ने अलग - अलग नियम को जोड़ कर धर्मो का निर्माण किया | सदियों से कई प्रकार के धर्म गुरुओ का अवतार हुआ और सभी गुरु नए - नए धर्मो की स्थापना करके चले गए और समय के साथ उन धर्मो में बद्लाव भी लाए गए | और बद्लावो के अनुसार कई धर्म दो भागो में विभाजित हो गए | परन्तु समस्त विश्व में फिर भी शांति और सुख स्थापित नही हो सका | क्योंकि सही रुप में किसी भी समाज ने ईश्वर को समझ नही पाया | आज हर धर्म के लोग यहि समझते हैं कि ईश्वर भी मनुष्य कि भांति अलग - अलग प्रकार का होता है | और एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाते रहते हैं |
पृथ्वी पर कई प्रकार के गुरु अवतरित हुए और उन सभी गुरुओ ने कई तरह के उपदेश दिए परन्तु इन गुरुजनो ने प्रेम को ही सर्वोपरि माना प्रेम को ही ईश्वर के रुप में समझा गया है | आपसी मतभेद, हिंसा,और ईर्श्या किसी भी धरम में मान्य नही हो सकते क्योंकि ऐसे मानसिक विकारो के चलते कही भी शांति और प्रेम की भावना नही हो सकती |
मनुष्य आज भी अज्ञानता वश भटक ही रहा है | उसे कोई रास्ता समझ नहीं
आता कि वो किस दिशा में जाए | सांसारिक दुखो को झेलते हुए मनुष्य
मृत्यु को ही एकमात्र उपाय समझ लेता है | परन्तु मृत्यु किसी समस्या का
समाधान नही है | मृत्यु एक नए सफर कि सुरुआत है | पूर्व जनम के किए हुए
कर्मो को भोगने हेतु मनुष्य नया जनम लेता है |
भारत में तपस्या में लीन कई तपस्वी इन रहश्यो का ज्ञान रखते हैं | और यही कारण है कि ये तपस्वी संसारिक मोह माया से दूर रह कर अपना सारा जीवन तप करने में व्यतीत करते हैं | क्योंकि ये तपस्वी जानते हैं कि ब्रह्मांड में एक ही शक्ति है जिन्हें हम सभी शिव या शक्ति के रुप में जानते हैं | ब्रह्मांड के संचालन हेतु कई देवि - देवताओ कि संरचना कि गयी है |
कुछ लोग इन्हीं देवि - देवताओ कि पूजा करते है और अंत में इन्हीं में समा जाते हैं | कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सारा जीवन भूत - प्रेत , जिन्नो की पूजा में लगाते हैं और इन्हीं लोगो में मिल जाते है |
जो मनुष्य इन सभी प्रपंचो को छोड़ कर सिर्फ़ सर्वोच्च शिव शक्ति की आराधना करते हैं वो जनम - जनम के बंधन से मुक्त हो जाते हैं |
No comments:
Post a Comment