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Friday, September 29, 2017

guru and baba (गुरु और बाबा)






 सम्पूर्ण विश्व में गुरु और बाबा एक सम्मानीय पद माना जाता है | जहाँ भी किसी बाबा के चमत्कार सुनाई देते हैं लोग  दर्शन हेतु दौड़ पड़ते हैं  | एक वैज्ञानिक भी अथक मेहनत के द्वारा नई वस्तु का अविष्कार करता है और लोग उस वस्तु का उपयोग कर लाभ प्राप्त करते हैं | परन्तु उस वैज्ञानिक (scientists)के दर्शन हेतु कितने लोग जाते हैं ? उसकी तस्वीर लगा कर कितने लोग पूजा करते हैं ?  सायद कोई भी नहीं | जब बाबाओं को ईश्वर समान समझ कर पूजते हैं  तो वैज्ञानिक  को क्यों नहीं जबकि वो भी तो संसार को मेहनत करके कुछ दे रहा है | क्या ईश्वर सिर्फ बाबा या गुरु के अंदर ही मौजूद है ? ऐसा नहीं है ईश्वर हर किसी के अंदर है और हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानव सेवा कर रहा है | समस्त मानव जाति एक दूसरे पर निर्भर है |  फिर सिर्फ किसी एक ही व्यक्ति को बाबा या गुरु मान कर पूजा करना सही नहीं है  बाबाओं ने वर्तमान समय में लोगों को भ्रम जाल में फंसा कर बहुत सारा धन इकठ्ठा   कर  लिया बड़े -  बड़े आलीशान आश्रम बना लिए | क्या इन आश्रमों में सचमुच ईश्वर मौजूद है ? क्या इन आश्रमों में सेवा करके सचमुच पाप नष्ट हो जाते हैं ? यह एक विचारणीय विषय है |




संसार में जो भी सिद्ध गुरु हुए वह स्वयं साधारण जीवन बिताते थे और लोगों को अपनी तरह सिद्धि पूर्ण बनाते थे | संसार के भ्रम जाल से कैसे बचा जाये इसका ज्ञान देते थे | ब्रह्माण्ड के विज्ञान का  अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे | क्यूँकि पृथ्वी पर भौतिक शरीर ग्रहण करने के बाद आत्मा शरीर में होने वाले कई विकारों को झेलती है | और कष्ट भोगती है | ज्ञान के द्वारा इन कष्टों से मुक्ति पाना आसान हो जाता है | नाना प्रकार के मानसिक और शारीरिक उपद्रव मानव शरीर में उत्पन्न होते रहते हैं | और इन उपद्रवों के भ्रम जाल में फंस कर मनुष्य जन्म लेता जाता है और कष्ट का अंत किसी भी जन्म में नहीं होता |  मनुष्य का पूरा जीवन पूर्व जन्म में किये गए पाप दोषों को मिटाने  में बीत जाता है |


कई बार आश्रमों में गृह क्लेश से तंग आकर महिलाएं शरण ले लेती हैं तो क्या जीवन के क्लेश समाप्त हो जाते हैं ? सिर्फ ज्ञान की कमी से ये स्थिति उत्पन्न होती है | एक स्त्री या पुरुष का घर से पलायन परिवार के अन्य सदस्यों को भी पाप का भागी बनाता है |  और जिसका भुगतान हर जन्म में करना पड़ता है |  घर में बुजुर्ग और विधवा स्त्री को दिया गया कष्ट और उन्हें घर से बाहर जाकर कहीं शरण लेने को बाध्य करना पाप दोष की श्रेणी में आता है | जीवन में सुख की चाह रखने से क्या सचमुच सुख मिल जाता है ?  किसी प्राणी को कष्ट दे कर क्या  किसी मनुष्य का जीवन सुखी हुआ है ?  आज के समय में विचार शीलता होना आवश्यक है | आत्म मंथन करना भी बहुत आवश्यक है वर्ना मानव जीवन में कष्टों का अंत नहीं है | और ये कष्ट जन्म जन्मांतर तक चलता ही जाता है | अधिकतर देखा जाता है कि स्त्री या पुरुष मानसिक परेशानियों से तंग आकर आत्महत्या कर लेते हैं | उस समय उनकी मानसिक स्थिति उन्हें इतना तड़पा देती है कि वो और भी ज्यादा कष्टदायक कार्य की ओर कदम बढ़ा लेते हैं | समाज में लज्जित होने के डर को लेकर भी लोग आत्महत्या करने का निर्णय ले लेते हैं | यदि उन्हें यह ज्ञान हो जाये कि ऐसी परिस्थिति किसी जन्म में किये गए पाप को भोगने के लिए उत्पन्न हो रही है | तो वह और ज्यादा बुरा कर्म करने से खुद को बचा पाएंगे और एक स्वस्थ सुन्दर जीवन जीने की और कदम बढ़ा लेंगे |



प्रत्येक मनुष्य के कष्ट भिन्न - भिन्न हो सकते हैं और उन कष्टों का निवारण सिर्फ बाबाओं का पास हो ये सही नहीं | स्वयं में ज्ञानवान बनना होगा | हर परिस्थिति के विषय में पहले से ही विचार करना होगा | भविष्य में जीवन कैसा होगा इस बात का वर्तमान में ही विचार करना होगा | जवानी में ही आने वाले बुढ़ापे को जीने की तैयारी करनी होगी | जरुरत से ज्यादा निर्भरता जीवन को बोझ बना देती है | और फिर मन में कुढ़न पनपने लगती है |